विचारों की उधेड़बुन में
एक अमृत का प्याला
सोचता था मिलेगी मंज़िल
पर मिल गया शिवाला ।
मृत्यु का श्रृंगार यही
कभी सृष्टि साकार यही
इस अनंत माया में
दिखलाता गीता सार यही।
अश्रुओं की धारा में
भावना के रथ में
कौन कैसे कब मिले
इस दुर्गम पथ में ।
ओजस इसका कण-कण
हृदय का यही है गुंजन
श्र्वास-प्रश्वास की धारा में
यही बहे है क्षण-क्षण ।
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