अध्यात्म के अध्याय

Tuesday, May 15, 2018

प्राणायाम एवं ध्यान पर बैठने की मुद्राएँ

 

 

 

 

 प्राणायाम एवं ध्यान पर बैठने की मुद्राएँ

योग में पाँच सर्वश्रेष्ठ बैठने की अवस्थाएँ/स्थितियाँ हैं :

  1. सुखासन - सुखपूर्वक (आलथी-पालथी मार कर बैठना)


  2.  सिद्धासन - निपुण, दक्ष, विशेषज्ञ की भाँति बैठना।
     
  3. वज्रासन - एडियों पर बैठना।

  4. अर्ध पद्मासन - आधे कमल की भाँति बैठना।


  5. पद्मासन - कमल की भाँति बैठना।
     

    6. पार्वती-आसन - दोनों पैरो के तलवो को परस्पर जोड़ें | 

     


ध्यान लगाने और प्राणायाम के लिये सभी उपयुक्त बैठने की अवस्थाओं के होने पर भी यह निश्चित कर लेना जरूरी है कि :

  • शरीर का ऊपरी भाग सीधा और तना हुआ है।
  • सिर, गर्दन और पीठ एक सीध में, पंक्ति में हैं।
  • कंधों और पेट की मांसपेशियों में तनाव न हो।
  • हाथ घुटनों पर रखें हैं।
  • आँखें बंद, मुँदी हैं।
  • अभ्यास के समय शरीर निश्चल रहे।

सुखासन : सुख पूर्वक बैठना

बैठने की इस मुद्रा की सिफारिश उन लोगों के लिए की जाती है जिन्हें लम्बे समय तक सिद्धासन, वज्रासन या पद्मासन में बैठने में कठिनाई होती हो।
अभ्यास :
पैरों को सीधा करके बैठ जाएं। दोनों पैरों को मोड़ें और, दाएं पैर को बाईं जाँघ के नीचे और बाएं पैर को नीचे या दाएं पैर की पिंडली के सामने फर्श पर रखें। यदि यह अधिक सुविधाजनक हो तो दूसरी ओर पैरों को ऐसे ही एक-दूसरी स्थिति में रख लें। यदि शरीर को सीधा रखने में कठिनाई हो, तो सुविधाजनक स्थिति में उपयुक्त उँचाई पर एक कुशन, आराम गद्दी बिछा कर बैठ जाएं।
यदि सुखासन में सुविधापूर्वक और बिना दर्द बैठना संभव न हो, तो एक कुर्सी पर बैठ कर श्वास और ध्यान के व्यायामों का अभ्यास करना चाहिए। हर किसी के लिए सर्वाधिक महत्व की बात यह है कि शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहे, शरीर तनाव रहित हो और पूरे अभ्यास के समय निश्चल रहे।

सिद्धासन : निपुण की आसन-मुद्रा

सिद्धासन मन-मस्तिष्क को शांत करता है, नाडिय़ों पर संतुलित प्रभाव रखता है और चक्रों की आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनर्संचालित, अधिक सक्रिय कर देता है। अत: बैठने की यह मुद्रा प्राणायाम और ध्यान के लिए सर्वाधिक उपयुक्त (संगत) है।
अभ्यास :
टाँगों को सीधा कर बैठ जाएं। दाएं पैर को मोड़ें और फर्श पर शरीर के अति निकट पैर को रख दें। अब बाएं पैर को मोड़ें और बाएं पंजे को दाईं पिंडली के ऊपर रख दें। पैर को मोड़ें और एडी दाईं जंघा का स्पर्श करेगी। दाएं पैर की अँगुलियों को बाएं पैर की जंघा और पिंडली के बीच से ऊपर खींचें। बाएं पैर की अँगुलियों को दाएं खींचें। यदि शरीर को सीधा रख पाना कठिन हो या घुटने फर्श को न छू पाएं तो एक उपयुक्त ऊँचाई पर एक आराम गद्दी पर बैठ जाएं।
बाएं पैर को पहले मोड़ कर और दाएं पंजे को बाएं पिंडली-भाग के पास लाकर यह व्यायाम संभव है।

वज्रासन- एडियों पर बैठना

वज्रासन शरीर और मन-मस्तिष्क में एकात्म, सामंजस्य बनाए रखता है। यह पाचन-क्रिया को भी समृद्ध करता है। अत: भोजन के बाद लगभग 5-10 मिनट तक वज्रासन की स्थिति में बैठने की सिफारिश की जाती है।
अभ्यास :
घुटनों के बल आ जाएं। दोनों टाँगें एक साथ हैं। दोनों अंगूठे एक-दूसरे को छूते हैं, एडियाँ थोड़ी-सी बाहर को निकलती हुई हैं। शरीर के ऊपरी भाग को कुछ आगे की ओर झुकाएं और फिर वापस एडियों पर बैठ जाएं। धड़ सीधा रहता है। हाथों को जाँघों पर रख लें।

अर्ध पद्मासन : आधा कमल

जो व्यक्ति पद्मासन में आसानी से न बैठ पाएं उनके लिये इस आसन की सिफारिश की जाती है।
अभ्यास :
टाँगों को सीधा रख कर बैठ जायें। दायीं टाँग को मोड़ें और पंजे को शरीर के अति निकट फर्श पर रख दें। अब बायां पैर मोडें, पैर को शरीर के अति निकट दायीं जंघा पर रख दें। ऊपरी शरीर का भाग बिलकुल सीधा है। दोनों घुटने फर्श पर रहेंगे यदि शरीर को बिलकुल सीधा तना कर न रखा जाये या घुटनों को फर्श पर न लगाया जाये तो उपयुक्त ऊँचाई पर एक आराम गद्दी लगाकर बैठा जाये।
इस अभ्यास को बाईं टाँग पहले मोड़ कर और दायें पैर को बायीं जंघा के ऊपर रखकर भी किया जा सकता है।

पद्मासन : कमल

शीर्षासन सहित पद्मासन को आसनों में सर्वश्रेष्ठ या शाही आसन के रूप में जाना जाता है। कमल अवस्था चक्रों को सक्रिय करती है और उनमें संतुलन बनाती है तथा विचारों को शान्त करती है। प्राणायाम और ध्यान के लिये यह बैठने की आदर्श अवस्था है।
अभ्यास :
फर्श पर टाँगों को सीधा करके बैठ जायें। दायीं टाँग को मोड़ें और पैर को बायीं जंघा के ऊपर शरीर के अति निकट ले आयें। अब बायीं टाँग को मोड़ें और पैर के पंजे को दांयी जंघा के ऊपर शरीर के अति निकट ले आयें। शरीर का ऊपरी भाग बिलकुल सीधा रहना चाहिये और घुटनों को फर्श पर विश्राम देने के लिये उपयुक्त ऊँचाई पर रखी आराम गद्दी पर बैठना चाहिये।
इसी स्थिति का अभ्यास पहले बाईं टाँग फिर दाईं टाँग मोड़कर भी किया जा सकता है।

 पार्वती आसन

विधि :

समतल भूमि पर सामान्य मुद्रा में बैठ जायें| अब दोनों पैरों को मोड़कर उनके तलवों और उंगलियों को एक दूसरे से मिला दें| इसके बाद दोनों पैरों को खींचकर अंडकोषों का नजदीक ले जाकर एडियों को गुदास्थान से लगा दें| पैरों को इस तरह से लगाये की पंजे अंडकोषों से बाहर की तरफ रहें| अब दोनों हाथों से घुटनों पर दबाव डालकर घुटनों को ज़मीन से सटा दें| शरीर व गर्दन को बिल्कुल सीधा रखें|

पार्वती आसन  के लाभ :

1.    इस आसन का नियमित अभ्यास करने से घुटने, पैरों की उंगलियां, जांघों के जोड़ मजबूत और लचीले बनाये जा सकते है|
2.      इस आसन द्वारा बवासीर और भगंदर जैसे रोग भी ठीक किये जा सकते है|
3.      पार्वती आसन  पैरों की उंगलियों, टखनों, घुटने, जांघों के साथ साथ अंडकोषों और सीवन के सभी रोगों का नाश करने में सहायक होता है|
4.      ब्रह्म्चारिणी स्त्रियों को यह आसन बहुत ही लाभ पहुंचाता है|
5.      यह आसन वीर्यवाही नसों को शुद्ध व पवित्र बनाने की शक्ति प्रदान करता है|
6.      इस आसन से मूत्र सम्बन्धी दोषों को भी ठीक करके योनी के सभी विकार दूर किये जा सकते है|

हाथों की स्थिति

श्वास और ध्यान एकाग्र करने के व्यायामों में और ध्यान लगाने के लिये भी विशिष्ट मुद्राओं का उपयोग किया जाता है। मुद्रा या स्थिति वह अवस्था है जिसका अभ्यास एक विशिष्ट उद्देश्य की अभिव्यक्ति के लिये किया जाता है।

चिबुक (ठोडी) मुद्रा - ध्यानावस्था में अगुंलियों की स्थिति

अभ्यास :
ध्यानावस्था में हाथों को घुटनों पर रखें जिसमें हथेलियाँ ऊपर की ओर होंगी। अंगूठा और तर्जनी अंगुली एक दूसरे का स्पर्श करते हैं और शेष तीन अँगुलियाँ सीधी परन्तु तनाव-रहित रहेंगी।
चिबुक मुद्रा व्यक्ति की चेतनता का ब्रह्माण्ड के स्व से मिलन दर्शाता है। तर्जनी अँगुली वैयक्तिक चेतना को और अंगूठा ब्रह्माण्ड की चेतनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। शेष तीन अँगुलियाँ तीन गुणों, विश्व के तीन मूल गुणों की संकेतक हैं। [1] योगी का लक्ष्य तीन गुणों* के परे जाना और ब्रह्माण्ड के स्व से मिल जाना होता है।

प्राणायाम मुद्रा - श्वास अभ्यासों में हाथों की स्थिति

अभ्यास :
दायें हाथ की तर्जनी अँगुली और मध्यमा अँगुली को मस्तक के मध्य में भौंहों के बीच रख लें। अगूँठे का उपयोग दायें नथुने को बंद करने और अनामिका का उपयोग बायें नथुने को बंद करने के लिये किया जाता है।
यदि दायां हाथ थक जाये तो बायें हाथ से भी इस अभ्यास को करना संभव है।
Posted by Unknown at 2:09 PM
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Labels: YOG

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